जेनेरिक दवाएं बनाने और उनके निर्यात में भारत अव्वल देश है. साल 2019 में भारत ने 201 देशों को जेनेरिक दवाएं निर्यात की हैं और उससे अरबों रुपए कमाए हैं.
लेकिन आज भी भारत इन दवाओं को बनाने के लिए चीन पर निर्भर है और दवाओं को प्रोडक्शन के लिए चीन से एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स (API) आयात करता है. ये दवाइयां बनाने का कच्चा माल होता है.
चीन में कोरोना वायरस फैलने की वजह से आयात और निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है और एपीआई का आयात ना हो पाने की वजह से कई कंपनियों दवाओं के प्रोडक्शन में कमी आ रही है. जिसका असर आने वाले वक़्त में दवाओं की वैश्विक आपूर्ति पर दिख सकता है.
भारत सरकार के वाणिज्य विभाग से मान्यता और समर्थन प्राप्त ट्रेड प्रोमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (TPCI) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2018-19 में भारत से दवाओं का अनुमानित निर्यात 19.14 अरब डॉलर का था.
इन दवाओं को बनाने के लिए क़रीब 85 फ़ीसदी एपीआई (कच्चा माल) चीन से आयात किया जाता है. भारत में एपीआई का प्रोडक्शन बेहद कम है और जो एपीआई भारत में बनाया जाता है उसके फ़ाइनल प्रोडक्ट बनने के लिए भी कुछ चीज़ें चीन से आयात की जाती हैं. यानी भारतीय कंपनियां एपीआई प्रोडक्शन के लिए भी चीन पर निर्भर हैं.
बढ़ रही हैं एपीआई की क़ीमतें
कोरोना वायरस की वजह से चीन से एपीआई के आयात पर असर पड़ा है. चीन से सप्लाई बंद होने की वजह से भारत में दवाएं बनाने वाली कंपनियों को एपीआई अब बढ़ी हुई क़ीमत पर ख़रीदना पड़ रहा है.
मुंबई स्थिति कंपनी आरती फार्मा एपीआई आयात करती है और उसे दवा बनाने वाली कंपनियों को बेचती है. कंपनी के मालिक हेमल लाठिया ने बताया कि चीन से जो भी कच्चा माल आता है वो पूरी तरह बंद है. कोई कंसाइन्मेंट नहीं आ रहे और कब तक आएंगे इसकी कोई जानकारी नहीं है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ''भारत में जो एपीआई बनते हैं वो भी चीन पर ही निर्भर हैं. इसलिए यहां के जो एपीआई मैन्युफैचर हैं उन पर असर पड़ रहा है और हम जो सीधे चीन से एपीआई आयात करते हैं उसमें भी कमी होने लगी है.''
उनका अनुमान है कि अप्रैल तक शायद आयात फिर से शुरू हो जाए. लेकिन एक से डेढ़ महीने तक ये समस्या जस की तस रह सकती है.
हेमल लाठिया कहते हैं, ''एपीआई के पुराने स्टॉक की क़ीमतें 10 से 15 फ़ीसदी तक बढ़ गई हैं. जो कंपनियां चीन से एपीआई आयात करके स्थानीय कंपनियों को बेचती हैं वो स्टॉक में आ रही कमी की वजह से कीमतें बढ़ाकर एपीआई बेच रही हैं.''
भारत में क्यों कम है एपीआई प्रोडक्शन?
विशेषज्ञों के मुताबिक़, चीन में एपीआई का प्रोडक्शन भारत के मुक़ाबले 20 से 30 फ़ीसदी तक सस्ता है.
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब चीन से एपीआई आयात रुकने को लेकर चिंता जताई जा रही है. साल 2014 में भी इसे लेकर लोकसभा में सवाल जवाब भी हुए थे.
उस वक़्त दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव की वजह से यह चिंता जताई जा रही थी कि शायद चीन कच्चे माल की सप्लाई रोक सकता है. इस समस्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठकें भी हुईं और इस स्थिति से निपटने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन भी किया गया था.
तत्कालीन रसायन और उर्वरक मंत्री अनंत कुमार ने कहा था कि आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल 12 दवाएं ऐसी हैं जिन्हें तैयार करने के लिए ज़रूरी 80 से 90 प्रतिशत कच्चा माल चीन से आता है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, टास्क फोर्स ने सुझाव दिया था कि एपीआई का प्रोडक्शन भारत में बढ़ाना होगा जिससे चीन पर निर्भरता कम हो.
क्या प्रोडक्शन में कमी आई है?
हेमल लाठिया यह भी कहते हैं कि अधिकतर कंपनियों ने या तो दवाओं का प्रोडक्शन कम कर दिया है या फिर जो स्टॉक उनके पास पहले से था उसी से काम चला रही हैं और बेहद ज़रूरी चीज़ें ही ख़रीद रही हैं. अतिरिक्त स्टॉक कोई नहीं ख़रीद रहा. मांग ज़्यादा है और आपूर्ति कम है इसलिए क़ीमतें बढ़ रही हैं. अगर डेढ़ महीने तक सप्लाई नहीं शुरू हुई तो मुश्किलें बढ़ेंगी और क़ीमतें भी.
दवा बनाने वाली कंपनी मैक्सटार-बायो जेनिक्स के डायरेक्टर जगदीश बंसल कहते हैं कि क़रीब 70 फ़ीसदी एपीआई वो चीन से आयात करते हैं. उनकी कंपनी कैप्सूल बनाती है. चीन से आयात बंद होने की वजह से जिन लोगों के पास स्टॉक पहले से रखा है वो ऊंचे दामों में बेच रहे हैं.
जगदीश बंसल कहते हैं, ''जो स्टॉक है वो क़रीब एक महीने तक चल सकता है. अगर एक महीने के अंदर आयात शुरू नहीं हुआ तो काफ़ी मुश्किलें आने वाली हैं.''
वो मानते हैं कि चीन से एपीआई आयात बंद होने की वजह से उनकी कंपनी में दवाओं का प्रोडक्शन कम हो रहा है और सप्लाई जल्दी शुरू नहीं हुई तो दवाओं का बनना रुक सकता है.
लेकिन चीन से सप्लाई मिलने में अगर लंबा वक़्त लगा तो असर ज़रूर दिखेगा.